यदि आपका मन प्रसन्न नहीं है तो इसका जिम्मेदार कोई और नहीं है बल्कि आप स्वंय हैं। इसी प्रकार अगर आप सुखी है तो यह भी आपको अपने ही कारण प्राप्त हुआ है। ईश्वर का आपके सुख-दु: ख से कोई संबध नहीं है। ईश्वर तो मात्र कर्म का फल प्रदान करने वाला है। यूं समझ लीजिए कि ईश्वर कमल का पुष्प है। कमल पुष्प जैसे कीचड़ में रहकर भी कीचड़ के गुण दोष से प्रभावित नहीं होता, उसी प्रकार ईश्वर सब में और सब के बीच में रहकर भी किस से न तो मित्रता करता है और न शत्रुता। आप जैसा करेंगे और जैसा चाहेंगे वैसे ही आपके आस-पास का वातावरण तैयार कर देगा।  
हस्तरेखा विज्ञान भी भविष्य को जानने का एक माध्यम है। लेकिन अगर आप अपने हाथों को गौर से देखें तो पाएंगे कि समय-समय पर हाथों की रेखाओं में परिर्वतन हो रहा है। यह परिर्वतन आपके कर्म और व्यवहार के अनुरूप होता है। इसलिए अगर आप सोचते हैं कि एक बार जो किस्मत में लिखकर आ गया है ऐसा होना तय है तो मन से इस धारणा को निकाल दीजिए। अगर ऐसा होता है तो ज्योतिषशास्त्र  से सिर्फ भविष्य देखा जा सकता था। लेकिन ज्योतिषशास्त्रों में भविष्य देखने के साथ ही साथ उपाय भी बताये जाते हैं ताकि घटना में बदलाव किया जा सके।  
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि उद्धारेदात्मनात्मानं नात्मानवसादयेत। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन?।। अर्थात मनुष्य स्वयं ही अपना शत्रु और मित्र है। मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं को पतन से बचाये और संसार रूपी समुद्र से उद्धार के लिए प्रयास करे। जो मनुष्य स्वयं का मित्र होता है वह सकरात्मक सोच रखता है और ईश्वर ने जो भी साधन प्रदान किये हैं उसी से संतुष्ट होकर उन्नति के लिए प्रयास करता है। इसके विपरीत जो लोग साधन हीनता का रोना रोते रहते हैं और उन्नति के प्रयास नहीं करते हैं वह स्वयं ही अपने शत्रु हैं।  
वेद में कहा गया है कि उद्यानं ते पुरूष नावयनम्। यानी हे पुरूष! तुझे ऊपर उठना है न कि नीचे गिरना। इसलिए मनुष्य को हमेशा उन्नति के लिए ऊपर उठने के लिए प्रयास करना चाहिए। नकारात्मक सोच रखने से मन दु?खी होता है और प्रोध बढ़ता है। वाणी में प्रेम और मधुरता नहीं रह जाती है। अनायास ही कोई गलत कार्य कर बैठते हैं। इसलिए सोच बदलिए और उन्नति के लिए प्रयास कीजिए। जैसा आप सोचेंगे वैसा हो जाएगा।