सनातन धर्म में वैसे तो कई सारी जातियां शामिल है लेकिन इन सभी में ब्रह्माणों को श्रेष्ठ माना जाता है ये सभी से उच्च है क्योंकि ये ईश्वर से जुड़े माने जाते हैं और उनकी की आराधना व साधना में जीवन व्य​तीत करते हैं वही यास्क मुनि ने निरुक्त में लिखा है कि ब्राह्मण का अर्थ होता है जो ब्रह्म को जानता है, जो ब्रह्म में विचरण करता है ईश्वर को जानता है शतपथ ब्राह्मण भी ब्राह्मण को इसी अर्थ में इंगित करता है

वही ऋग्वैदिक युग में जाति जैसे कोई भी चीज नहीं थी ऋग्वेद की मानें तो ईश्वन ने सभी मनुष्य को एक समान बनाया है और सभी मनुष्य एक समान है वही अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करते हैं वही उनके वंशज अपनी योग्यता और इच्छा के अनुसार कुछ अलग काम कर सकते हैं और उस काम के अनुसार ही उनका स्तर और वर्ग भी तय किया जाता है, तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा इसी महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहे हैं।

धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अगर देखा जाए तो ब्राह्मण वही है जो परोपकारी हो, ज्ञानी हो सभी को समान नजरिएं से देखने वाला हो। प्रकृति को हानि पहुंचाए बिना काम करें वही निर्दोष को कभी दंड ना दें अन्याय को बर्दाश्त ना करें उन्नति करने वाला है, धर्म आचरण करने वाला हो। समाज के कल्याण के बारे में सोचें वेदों और प्राकृतिक विज्ञान का ज्ञाता हो। ऐसा मनुष्य ही ब्राह्मण माना जा सकता है और सभी लोग इन सभी चीजों को धारण करने के बाद ही ब्राह्मण बन सकते हैं

वही धार्मिक ग्रंथ शिव पुराण में भी इसी को और स्पष्ट करते हुए सभी को ब्राह्मण बताया है और उसका वर्गीकरण भी दिया गया है। वही बाद में युग में प्रभावशाली वर्गों द्वारा अपने हित में जाति की व्यवस्था की गई जिससे उनके और उनके वंशजों का हित सध सकें वही मनुस्मृति और अन्य ग्रंथों में ब्राह्मण को जाति के अंतर्गत लाया गया है जिसके अनुसार ब्राह्मण का पुत्र भी जन्म से ब्राह्मण माना गया है लेकिन यह विचार सनातन शास्त्रों में नहीं पाया जाता है। मगर यह ब्राह्मण वर्ग के अथवा उच्च वर्ग के शासकों द्वारा पोषित कि गई विचारधारा है जिसके कारण आज मनुष्य जातियों में बट चुका है।