धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और उनकी मित्रता के किस्से तो सभी ने सुने और पढ़ें है कहा जाता है कि भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने अपने बचपन के मित्र सुदामा को दो मुट्ठी चावल के बदले दो लोक की संपत्ति दे दी थी लेकिन तीसरी मुट्ठी पर देवी रुक्मणि ने श्रीकृष्ण को रोक दिया था इसको लेकर अधिकतर लोगों के मन में प्रश्न उठता है कि देवी रुक्मणि ने ऐसा क्यों किया था तो आज हम अपने इस लेख द्वारा इसी पर चर्चा कर रहे हैं और आपको पौराणिक कथाओं के अनुसार जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण के बचपन के मित्र सुदामा एक बार कृष्ण से मिलने उनके महल पहुंच गए। जब कृष्ण ने सुदामा को देखा तो वे उन्हें अपने महल के भीतर ले आए और उन्हें अपने राजसिंघासन पर बैठाकर अपने आंसुओं से उनके चरण धोए। कृष्ण को ऐसा करते देख उनकी पटरानियां और महल में मौजूद सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। सभी यह सोचने लगे कि द्वारकाधीश ये किस व्यक्ति के चरण को धो रहे हैं भगवान कृष्ण ने वहां मौजूद सभी लोगों को बताया कि ये उनके सखा सुदामा है।

श्रीकृष्ण ने जब सुदामा से कहा कि वह उनके लिए क्या संदेश लेकर आए है तो इतना सुनते ही सुदामा को लज्जा आ गई और उन्होंने अपनी पोटली छिपाकर कहा कुछ भी नहीं इतने में कृष्ण बोले क्यों झूठ बोलते हो सखा, क्या आज भी बचपन की तरह तुम मेरे हिस्से के चावल खान चाहते हो। यह कहते हुए कृष्ण ने खुद ही सुदामा से वो पोटली ले ली और चावल खाने लगे। कहते हैं कि जैसे ही भगवान कृष्ण ने एक मुट्ठी चावल खाई तो इसके बदले उन्होंने सुदामा को एक लोक की संपत्ति दे डाली।

इसके बाद कृष्ण दूसरी मुट्टी चावल खाकर सुदामा को दो लोक की सभी संपत्ति सुदाम को सौंप दी। लेकिन जब श्रीकृष्ण तीसरी मुट्टी चावल खाने जा रहे थे तभी रुक्मणि उन्हें रोकते हुए बोली प्रभु अगर आप तीनों लोक की संपत्ति अपने मित्र को सौंप देंगे तो अन्य सब जीव और देवता कहां जाएंगे। रुक्मणि की बात सुनकर भगवान रुक गए और भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा के जीवन की सभी दुख दरिद्रता को दूर कर उन्हें प्रेम पूर्वक विदा किया।