वसु सेन नाम का एक पुरुषार्थी व चक्रवर्ती सम्राट था लेकिन उसके राज ज्योतिष ने उसका मस्तिष्क ज्योतिष की ओर मोड़ रखा था।

एक दिन राजा वसु सेन राज ज्योतिषी के साथ देश के दौरे पर निकले। उन्हें रास्ते में एक किसान मिला जो हल-बैल लेकर खेत जोतने जा रहा था। राज ज्योतिषी ने उसे रोककर कहा, ''मूर्ख! जानता नहीं, आज इस दिशा में जाना ठीक नहीं है, और तुम उसी दिशा की ओर जा रहे हो। यदि तुम इसी दिशा में फिर से गए तो तुम्हें हानि उठानी पड़ सकती है।'' तब किसान ने राज ज्योतिषी से कहा, ''मैं पिछले कई वर्षों से इसी दिशा में जा रहा हूं। ऐसे में कई ऐसे दिन भी आए होंगे जब यह दिशा ज्योतिष की लिहाज से ठीक नहीं होगी। लेकिन मुझे आज तक कुछ भी नहीं हुआ।''

किसान ने जब राज ज्योतिषी की बात को सिरे से नकार दिया तो ज्योतिषी ने कहा, ''अच्छा तो तुम अपना
हाथ दिखाओ, तुम्हारी हस्तरेखा देखूं।'' किसान ने उसकी ओर हाथ किया।

तब राज ज्योतिषी ने गुस्से में कहा, ''मूर्ख हाथ दिखाते समय सीधा हाथ दिखाते हैं, उलटा नहीं।''
किसान नाराज होकर बोला, ''मैं अपना हाथ किसी के सामने क्यों फैलाऊं, मेहनत करता हूं। मुहूर्त व हस्तरेखा तो वे देखते हैं जो कर्महीन व निठल्ले होते हैं।'' यह सुनकर राज ज्योतिषी कोई उत्तर न दे सके। नजदीक ही राजा वसु सेन खड़े थे उन्हें इस घटना से कर्म की महिमा का ज्ञान हुआ और फिर ज्योतिषी की बातों में नहीं उलझे।''