सनातन धर्म में हर चीज को लेकर कुछ रीति रिवाज और परंपराएं बनाई गई है जिनके अनुसार सभी को चलना होता है हिंदू धर्म में विवाह रीति रिवाजों में कन्यादान की पवित्र रस्म निभाई जाती है है जिसे महत्वपूर्ण बताया गया है इस धर्म में शादी विवाह को केवल एक संस्कार के तौर पर नहीं देखा जाता है बल्कि इसे एक धार्मिक कर्तव्य भी माना जाता है जिसके द्वारा दो व्यक्ति या कह सकते हैं कि दो परिवार, दो गोत्रो का मिलन होता है और वे अपने सांसारिक कर्तव्य को पूरा करते है, और विवाह में कन्या के माता पिता कन्यादान की रस्म को निभाते है तो आज हम अपने इस लेख में आपको बता रहे है कि कन्यादान क्या होता है और यह क्यों जरूरी है तो आइए जानते है।

जानिए क्या होता है कन्यादान-
हिंदू विवाह में जो भी रीति रिवाज या संस्कार निभाए जाते है उन सबका एक धार्मिक महत्व होता है जो हमारे समाज और संस्कृति के प्रति हमारे दायित्व को दर्शााता है अधिकतर हम हिंदू विवाह में कन्यादान की रीति को देखते है जहां वधु के माता पिता या बड़ा भाई कन्यादान की रीति को निभाता है जिसे जरूरी बताया गया है धार्मिक पुराणों और शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति के जीवन में तीन महिलाओं का प्रमुख स्थान होता है माता, पत्नी और पुत्री। इन्हीं के प्रति वह अपने तीन मूल कर्तव्यों को निभाता है पहला माता जिसे प्रथम गुरु माना जाता है

जो अपने संस्कारों द्वारा शिशु का पोषण करती है इसलिए माता को सम्मान देकर उसकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करके अपने कर्तव्य को निभाते है। वही दूसरा कर्तव्य पत्नी का होता है जिसे इस धर्म में व्यक्ति का आधा अंग माना गया है जो पुरुष का आत्मविश्वा होती है जिसकी रक्षा करके वह उसके गौरव की रक्षा करता है।

वही ​तीसरा और आखिरी कर्तव्य होता है पुत्री जो पुरुष का स्वाभिमान और उसके कुल की प्रतिष्ठा मानी जाती है किसी कुल की प्रतिष्ठा या स्वाभिमान कोई वस्तु नहीं हो सकती है जिसे दान किया जाए यह तो आदर के साथ किसी को सौंपा जाता है कन्यादान के द्वारा व्यक्ति अपने इन्हीं धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करता है कन्यादान के रूप में वह एक अंश माता एक अंश पत्नी और एक अंश स्वयं का देकर किसी के जीवन को पूर्णता प्रदान करता है और इसे ही कन्यादान कहा जाता है।