भोपाल । मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों की घोषणा भले ही नहीं हुई हो, पर चुनावी हलचल काफी समय से तेज हो गई है। देश और प्रदेश के बड़े नेताओं के दौरे, चुनावी सभाएं, घोषणाओं की भरमार और कई नई योजनाएं घोषित हो रही हैं, जो चुनावी आहट की सूचना देती हैं।
बता दें कि प्रदेश की कुल 230 सीटों में से 148 सामान्य, 35 अनुसचित जाति और 47 अनुसचित जनजाति के लिए आरक्षित है। प्रदेश के अंचल में सर्वाधिक 66 सीटें मालवा-निमाड़ से आती हैं, जो प्रदेश की कुल सीटों का 28.7 प्रतिशत है। इसे ऐसा भी कहा जा सकता है कि मालवा-निमाड़ से ही मध्य प्रदेश में सत्ता का द्वार खुलता है। प्रदेश की राजधानी भले ही भोपाल है, लेकिन आर्थिक राजधानी का केंद्र बिंदु मालवा-निमाड़ ही है। प्रदेश के विकास के साथ-साथ राजनीतिक भूमिकाओं में मालवा-निमाड़ का महवपूर्ण योगदान रहता है।
एक नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश बना और उसके बाद मालवा-निमाड़ से अब तक छह मुख्यमंत्री प्रदेश में रहे हैं। इस क्षेत्र का राजनीतिक प्रभाव संपूर्ण प्रदेश पर दिखता है।    2018 में मालवा-निमाड़ में कांग्रेस ने कुल आरक्षित सीटों में 21 तो भाजपा ने नौ सीटें जीती थीं। सामान्य सीटों में भाजपा को 20 सीटें तो कांग्रेस को 13 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। तीन विधायक अन्य पार्टियों से थे।
भाजपा को मिले थे ज्यादा वोट
2018 के विधानसभा चुनाव में मालवा-निमाड़ में मतदान 77.12 प्रतिशत हुआ था। इसमें भी भाजपा को 44.25 प्रतिशत और कांग्रेस को 43. 97 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को मत कम थे लेकिन 34 विधानसभा सीटें जीतने में उसे कामयाबी मिली थी। भाजपा को 29 स्थानों पर ही संतोष करना पड़ा था। लोकसभा चुनावों में यह ट्रेंड अलग रहा। 2019 के लोकसभा चुनाव में मालवा-निमाड़ की आठ लोकसभा सीटों पर विधानसभा क्षेत्र अनुसार भाजपा को 58.46 प्रतिशत तो कांग्रेस को 37.34 प्रतिशत मत मिले थे। मालवा-निमाड़ प्रदेश के विधानसभा चुनाव में हमेशा ही निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। इसी वजह से सभी राजनीतिक दलों का इस पर विशेष फोकस रहेगा।