वैसे तो मंत्रों के अर्थ इतना महत्व नहीं रखते क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि मंत्रों के अर्थ में नहीं बल्कि ध्वनि में शक्ति होती है। इसका एक कारण यह भी है कि इन मंत्रों की उत्पति के बारे में कहा जाता है कि ये किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं लिखे गए हैं बल्कि वर्षों की साधना के बाद ऋषि मुनियों ने इन ध्वनियों को सुना है। विशेषकर बीज मंत्रों के बीजाक्षरों का अर्थ साधारण व्यक्ति के लिए समझना बहुत मुश्किल है उसे ये निर्रथक लगते हैं लेकिन माना जाता है कि ये बीजाक्षर सार्थक हैं और इनमें एक ऐसी शक्ति अन्तर्निहित रहती है जिससे आत्मशक्ति या फिर देवताओं को उत्तेजित किया जा सकता है। ये बीजाक्षर अन्त:करण और वृत्ति की शुद्ध प्रेरणा के व्यक्त शब्द हैं जिनसे आत्मिक शक्ति का विकास किया जा सकता है।
मंत्र का शाब्दिक अर्थ होता है एक ऐसी ध्वनी जिससे मन का तारण हो अर्थात मानसिक कल्याण हो जैसा कि शास्त्रों में कहा गया है ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। वेदों में शब्दों के संयोजन से इस प्रकार की कल्याणकारी ध्वनियां उत्पन्न की गई।
माना जाता है कि मनुष्य की अवचेतना में बहुत सारी आध्यात्मिक शक्तियां होती हैं जिन्हें मंत्रों के द्वारा प्रयोग में लाया जा सकता है। मंत्र की ध्वनियों के संघर्ष से इन आध्यात्मिक शक्तियों को उत्तेजित किया जाता है हालांकि इसके लिए सिर्फ मंत्रोंच्चारण काफी नहीं है बल्कि दृढ़ इच्छा शक्ति से ध्वनि-संचालन एवं नैष्ठिक आचार भी जरुरी है। तंत्र साधना के मंत्रों में मंत्रोच्चारण की शुद्धि व मंत्रोचार के दौरान विशेष नियमों का पालन करना होता है जो किसी गुरु के मार्गदर्शन में ही संभव है।
अक्सर लोग मंत्रों या बीज मंत्रों का जाप करते हैं या फिर जाप करवाते हैं लेकिन इन मंत्रों के मायने क्या हैं इस पर ध्यान नहीं देते लेकिन हर मंत्र में निहित बीजाक्षर और बीजाक्षर में निहित वर्ण बिंदु एवं मांत्राएं किसी न किसी देवी-देवता का प्रतिनिधित्व करती है। इस बारे में विश्वसनीय जानकारी बहुत कम मिलती है। लेकिन फिर भी हमने कुछ प्रयास किया है इन मंत्रों का अर्थ जानने का। यह भी देखने को मिलता है कि गायत्री और मृत्युंजय मंत्र जैसे लोकप्रिय मंत्रों के सरलार्थ तो हमें मिल जाते हैं लेकिन अन्य मंत्रों के बारे में जानकारी नहीं मिलती।