भोपाल । मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में पार्टियां अब कॉरपोरेट कंपनियों की तर्ज पर काम कर रही हैं। कंपनियां किसी भी बड़े प्रोडक्ट को लांच करने से पहले मार्केट में सर्वे करवाती हैं और जरूरत के हिसाब से अपने उत्पाद बाजार में उतारती हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस कुछ इसी तरह से काम कर रही है। इस बार नेताओं की सिफारिश नहीं बल्कि जनता से मिले फीडबैक के आधार पर नेताओं को टिकट दिए जाएंगे। दोनों पार्टियां विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवारों के चयन के लिए सर्वे करवा रही हैं। इससे साफ है कि मध्य प्रदेश में वोटिंग से पहले भी नेताओं का भविष्य जनता के हाथ में है।
मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही मिशन-2023 की जीत की तैयारी तेज कर दी है। इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव में दोनों ही प्रमुख दलों के बीच मुकाबला कड़ा होना माना जा रहा है। भाजपा सत्ता बरकरार रखने और कांग्रेस में वापसी के लिए जोर लगा रही है। इस बार दोनों दलों के वरिष्ठ नेताओं ने सिफारिश पर नहीं बल्कि सर्वे के आधार पर टिकट देना तय किया है। इसके लिए दोनों दल अलग-अलग एजेंसियों से विधानसभा क्षेत्रों में सर्वे करवा रहे हैं। भाजपा विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधायकों से साफ कहा है कि जो जीतने वाला होगा उसी को टिकट मिलेगा। इसलिए फील्ड में जुट जाओ। मुख्यमंत्री के अलावा आरएसएस भी संगठन को सर्वे रिपोर्ट दे चुका है। केंद्र भी अपने स्तर पर सर्वे करा रहा है।

कांग्रेस पहले भी कर चुकी इस पर काम
वहीं, पीसीसी चीफ कमलनाथ भी कई मौकों पर कार्यकर्ताओं से कह चुके हैं कि सर्वे के आधार पर ही चुनाव में टिकट दिए जाएंगे। हमारी प्राथमिकता स्थानीय उम्मीदवार एवं जीतने वाले पर रहेगी। ऐसा कहा जाता है कि कांग्रेस ने 2018 में इंटरनल कुछ सर्वे करवाए थे, जिसके आधार पर टिकट बांटे थे। इसके बाद नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस ने महापौर के लिए भी सर्वे रिपोर्ट के आधार पर टिकट दिए थे। जिसका फायदा यह हुआ कि कांग्रेस के पांच महापौर ने चुनाव में जीत दर्ज की।

2018 का चुनाव भी नजदीकी रहा था
बता दें 2018 के विधानसभा चुनाव में 230 सीट में कांग्रेस को 114 और भाजपा को 109 सीट पर जीत मिली थी। कांग्रेस ने 4 निर्दलीय, 1 बसपा और 2 सपा विधायक के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। इसके बाद 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। जिसके बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई थी। अब दोनों ही पार्टियां चुनावी जीत के लिए जोर लगा रही हैं।