नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने 2 नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर रोक लगाने वाली याचिकाएं खारिज कर दीं। कोर्ट ने कहा कि कारण बाद में बताए जाएंगे। बेंच ने यह भी कहा कि 2023 का फैसला नहीं कहता कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए सिलेक्शन पैनल में ज्यूडीशियरी मेंबर होना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि वह चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अधिनियम 2023 पर फिलहाल रोक नहीं लगा सकता, क्योंकि इससे अव्यवस्था फैल जाएगी। नए चुनाव आयुक्तों के खिलाफ भी कोई आरोप नहीं हैं। हालांकि कोर्ट ने कानून को चुनौती देने वाली मुख्य याचिकाओं की जांच करने का आश्वासन दिया है। मामले की सुनवाई जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता ने की। उन्होंने केंद्र से पूछा कि चयन समिति को उम्मीदवारों के नाम पर विचार करने वक्त क्यों नहीं दिया।
कोर्ट ने 2023 अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सरकार से 6 हफ्ते में जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 5 अगस्त को होगी। इससे पहले केंद्र सरकार ने बुधवार 20 मार्च को हलफनामा दायर किया था। सरकार ने कहा था कि ये दलील गलत है कि किसी संवैधानिक संस्था की स्वतंत्रता तभी होगी, जब सिलेक्शन पैनल में कोई ज्यूडिशियल मेंबर जुड़े। इलेक्शन कमीशन एक स्वतंत्र संस्था है। याचिका कांग्रेस कार्यकर्ता जया ठाकुर और एनजीओ एशियन डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स ने दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
2023 का फैसला कानून बनने तक ही लागू था- सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच के 2023 के फैसले में यह कहीं नहीं कहा गया था कि नए कानून में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए चयन पैनल में ज्यूडीशियरी से एक सदस्य होना जरूरी है। फैसले में एक चयन पैनल बनाने का प्रस्ताव था, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सीजेआई शामिल किया जाए। बेंच ने यह भी कहा कि यह प्रस्ताव केवल संसद के कानून बनाए जाने तक था। फैसले का मकसद संसद को कानून बनाने के लिए प्रेरित करना था क्योंकि वहां खालीपन था। हालांकि इसमें यह नहीं बताया गया था कि किस तरह का कानून बनाया जाना चाहिए।