शिव धनुष ब्रह्म को पहचानने की कसौटी है।
पं निर्मल कुमार शुक्ल।।
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बैतूल 
किलेदार परिवार द्वारा आयोजित भव्य श्री राम कथा महोत्सव के चतुर्थ दिवस आज भगवान श्री राम की बाल लीला विश्वामित्र यज्ञ रक्षा धनुष यज्ञ परशुराम लक्ष्मण संवाद व श्री राम जानकी विवाह का वर्णन हुआ। कथा प्रवक्ता मानस महारथी पं निर्मल कुमार शुक्ल ने कहा कि भगवान शंकर का धनुष ब्रह्म को पहचानने की कसौटी है। जैसे स्वर्णकार की दुकान पर कसौटी पर कस कर असली सोने की पहचान की जाती है उसी प्रकार यह धनुष ब्रह्म को पहचानने का माध्यम है।आपने कहा कि नारद जी ने एक बार भगवान विष्णु और शिव जी में विरोध करवा दिया परिणामस्वरूप दोनों देवताओं में बड़ा घनघोर युद्ध हुआ अंततः युद्ध का कोई परिणाम निकलते न देख कर दोनों देवताओं ने अपने धनुष पर ब्रह्मास्त्र चलाया।इस दृष्य को देखकर सारा ब्रह्माण्ड कांप गया ब्रह्मा जी ने जगत विनाश के भय से शाप देकर दोनों के धनुषों को जड़ कर दिया। भगवान विष्णु ने अपना जड़ धनुष ऋचीक ऋषि को दे दिया तथा भगवान शंकर ने मिथिला नरेश राजा देवरात को अपना अजगव नामक जड़ धनुष दे कर कहा कि सदैव इसकी पूजा करना।राज के पूंछने पर भगवान शंकर ने कहा कि एक दिन तुम्हारे वंश में आदिशक्ति पुत्री बन कर आएगी तथा खेल खेल में इस धनुष को अल्पायु में ही बाएं हांथ से उठा लेगी तब समझ लेना कि धरती पर ब्रह्म का अवतरण हो गया है और तत्काल धनुष यज्ञ का प्रण कर देना। जिस तरह सर्प अपनी मणि को खोजता है वैसे ही जहां कहीं भी होगा परमात्मा तुम्हारी कन्या को प्राप्त करने आ जाएगा‌ यह धनुष ब्रह्म के अतिरिक्त कोई तोड़ नहीं सकता बस धनुष टूटते ही कन्या का पाणिग्रहण परमात्मा के हांथ करके कृतार्थ हो जाना। राजा देवराज के 8 पीढ़ी बाद राजा जनक हुए यह इन्हें सब समाचार मालूम था  एक दिन खेल खेल में सीता ने बायें हाथ से धनुष को उठा लिया बस यह देखते ही राजा समझ गये मेरे घर में आदिशक्ति का अवतार हो गया है और तत्काल धनुष यज्ञ की घोषणा कर दिया । विद्वान वक्ता ने विशाल जनसमूह को भाव विभोर करते हुए आगे कहा कि आध्यात्मिक दृष्टि से हमारा हृदय ही जनकपुर का विवाह मंडप है तथा भक्ति ही सीता और हमारा ज्ञान ही श्री राम के रूप में विद्यमान है। हमारे अंतःकरण में भक्ति और ज्ञान का मिलन हो जाना ही सीता राम का विवाह महोत्सव है। भक्ति ज्ञान वैराग्य जनु सोहत धरे शरीर।इससे पूर्व महराज श्री ने श्रीराम की बाल लीला ताडका सुबाहु वध और पुष्प वाटिका की मनोहारिणी कथा का मार्मिक विवेचन किया। राजा ठाकुर ने वक्ता और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया अरुण सिंह किलेदार राजेन्द्र सिंह और प्रदीप सिंह किलेदार तथा राज सिंह परिहार ने सभी धर्म प्रेमी श्रोताओं से हजारों की संख्या मे पधार कर कथामृत पान करने का आग्रह किया है।