हठ पूर्वक बैर कर रावण ने किया सीताहरण सबरी से मिले श्रीराम :- भैंसदेही रामलीला मंचन के छटवे दिन रावण अपनी बहन सुर्पणखा की नाक काटने का बदला लेने की योजना बनाता है। और भविष्य देखकर कहता है की अब इस तामसी शरीर से भक्ति तो होती नहीं यदि वे भगवान हुए तो मै उनसे हठ पूर्वक बैर करके अपने कुल का उद्धार करूँगा। मै अपनी बहन का बदला लेने के लिये  राम की अर्धांगिनी का हरण करूँगा। इसके लिये रावण मामा मारीच को स्वर्ण मृग बनकर पंचवटी मे सीता के सामने से जाने का कहता है। मामा मारीच रावण की बात मानकर सीता के सामने से स्वर्ण मृग बनकर गुजरता है। जिसे देखकर सीताजी रामजी से स्वर्ण मृग की खाल लाने के लिये कहती है। राम स्वर्ण मृग की खाल लाने जाते समय लक्ष्मण को सीताजी को कही छोड़कर नहीं जाने का कहकर चले जाते है। रामजी के हाथ स्वर्ण मृग मरते समय हाय लक्ष्मण कहते हुए मर जाता है। जिसे सीताजी सुन लेती है और लक्ष्मण को राम की मदद के लिये जाने का कहती है। लक्ष्मण कहते है की माता प्रभु राम पर कभी कोई मुसीबत आ ही नहीं सकती परन्तु सीता जी को कितना समझाने पर भी नहीं मानती मज़बूरी मे लक्ष्मण को जाने के लिये तैयार होना पड़ता है। जाते जाते लक्ष्मण एक रेखा खींच कर जाते है और कहते है की माता इस लक्ष्मण रेखा को पार मत करना नहीं तो अनर्थ हो जायेगा। लक्ष्मण के जाते ही रावण साधु के वेष मे सीताजी से भिक्षा मांगने पंचवटी आता है रावण जैसे ही लक्ष्मण रेखा को छूता है तो आग निकलती है जिसे देखकर रावण समझ जाता है। और सीताजी से लक्ष्मण रेखा के बाहर आकर भिक्षा देने के लिये कहता है सीता जी लक्ष्मण रेखा के बाहर आने से मना कर देती है जिससे नाराज होकर रावण वापस जाने की बात कहता है।सीताजी सोचती है की मेरे दर से कोई साधु खाली हाथ वापस नहीं जाना चाहिए। और मज़बूरी मे लक्ष्मण रेखा के बाहर आकर भिक्षा देती है उसी समय रावण सीता का हाथ पकड़कर हरण कर आकाश मार्ग से ले जाता है। उसी समय आकाश मार्ग मे गिद्धराज जटायु मिलता है। वह माता सीता को बचाने के लिये रावण से युद्ध करता है और घायल हो जाता है। इसी समय रावण जटायु के पँख काट देता है उधर लक्ष्मण राम के पास पहुंचते है जिसे देख रामजी कहते है भैया लक्ष्मण तुमको यहां नहीं आना चाहिए था। कही सीता के साथ कोई अनहोनी ना हो जाए तब राम लक्ष्मण पंचवटी मे सीताजी को ना पाकर इधर उधर ढूंढ़ते है। लेकिन सीता जी का कही पता नहीं चलता है तभी रास्ते मे उन्हें जटायु घायल अवस्था मे मिलता है। जो प्रभु राम को सारी बात बताता है। और अपने प्राण त्याग देता है। जिसका अंतिम संस्कार भगवान राम खुद करते है। आगे सीताजी को ढूढ़ते हुए राम लक्ष्मण मुनि मतंग के आश्रम पहुंचते है। जहाँ उन्हें सबरी मिलती है सबरी भगवान राम लक्ष्मण का आदर सत्कार करती है और मीठे मीठे बेर खुद चख कर श्रीराम को खिलाती है। जिसे खाकर राम कहते है यह बेर तो बहुत मीठे है इस प्रकार कृपानिधान ने सबरी के जूठे बेर खाकर नवधा भक्ति सबरी को प्रदान की। इसे कहते है भक्त और भगवान का प्रेम इसके बाद रामजी सीताजी का पता पूछते है तब सबरी उन्हें पम्पापुर सरोवर पर सुग्रीव के पास जाने का कहती है माता सीता के बारे मे वही आपको कुछ बता सकते है। वहाँ से श्रीराम के जाते ही सबरी अपने प्राण त्याग देती है। सबरी का मार्मिक प्रसंग देखकर दर्शक आनंदित हो गए। सबरी का अभिनय श्रीराम बारस्कर ने निभाया।