सरकार छोटे खुदरा विक्रेताओं को सस्ते ब्याज पर कर्ज देने की योजना बना रही है। साथ ही इस क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले कुछ नियमों को आसान बना सकती है। दो अधिकारियों ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कदम आगामी चुनाव में मतदाताओं को आकर्षित कर सकता है। ये ऐसे विक्रेता हैं, जिनका कारोबार दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियों के कारण प्रभावित हो रहा है।

सूत्रों ने बताया कि यह प्रस्ताव बजट में घोषित किया जा सकता है। इसका उद्देश्य छोटे भौतिक खुदरा क्षेत्र में विकास को पुनर्जीवित करना है, जो अमेजन, फ्लिपकार्ट, टाटा समूह समर्थित बिगबास्केट और रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियों के प्रवेश से प्रभावित हुआ है। सरकार एक ऐसी नीति पर काम कर रही है जिससे कम ब्याज दरों पर आसानी से कर्ज मिल सके। सस्ते कर्ज देने के लिए बैंकों को कैसे मुआवजा दिया जाएगा, इसका पता नहीं चला है। इसमें सरल ऑनलाइन प्रक्रिया के साथ नई दुकानों और नवीनीकरण के लिए लाइसेंसिंग जरूरतों को भी बदला जाएगा।

हर साल लाइसेंस के रिन्यूअल से परेशान होते हैं व्यापारी

रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आरएआई) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कुमार राजगोपालन ने कहा कि खुदरा स्टोरों को वर्तमान में 25 से 50 विभिन्न लाइसेंसों की जरूरत होती है, जिनमें से कुछ को हर साल रिन्यूअल किया जाना जरूरी है।अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने और करदाताओं की संख्या बढ़ाने के लिए मोदी ने 2016 में ज्यादा मूल्य के नोटों पर प्रतिबंध लगा दिया था।2017 में वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) पेश किया गया। इसने छोटे उद्योगों पर ज्यादा असर डाला।

ऑनलाइन रिटेलर्स ने पकड़ी रफ्तार

सरकार के इस फैसले से ऑनलाइन दिग्गजों ने तेज रफ्तार पकड़ी। इसके लिए सरकार को 2020 में रेहड़ी पटरी वालों को अपने व्यवसायों को फिर से शुरू करने में मदद करने के लिए 10 हजार रुपये की नए कर्ज की योजना शुरू करनी पड़ी। आरएआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के खुदरा क्षेत्र में ई-कॉमर्स की हिस्सेदारी 7% से बढ़कर 2030 तक लगभग 19% होने की उम्मीद है।