*मेरी छोटी सी है नाव तुम्हरे जादूगर पाँव मोहे डर लागे राम कैसे बिठाऊ तुम्हे नाव में*

भैंसदेही रामलीला मंचन के चौथे दिन वन में श्रीराम निषाद राज से मिलते है। भगवान श्रीराम को वन में पाकर निषाद अपने आपको धन्य समझता है की आज श्रीराम को पाकर मेरे किस्मत खुल गए। श्रीराम निषाद को वन आने का कारण बताते है निषाद बहुत दुखी होता है। और श्रीराम को अपने घर चलने के लिए कहते है श्रीराम चौहद वर्ष वन में रहने का पिताजी द्वारा दिया गया आदेश बता कर घर जाने से मना कर देते है। तब निषाद श्रीराम,  लक्ष्मण, सीता के लिए वन में ही घास की कुटिया बना देते है। और श्रीराम की बहुत सेवा करते है और मन ही मन बहुत दुखी होते हैऔर सोचते है की विधाता की ये कैसी लीला है। इसके बाद श्रीराम गंगा पार के लिए आगे बढ़ते है और केवट से गंगा पर चलने का कहते है। केवट पहले श्रीराम का परिचय जानते है परिचय जानने के बाद केवट गंगा पर कराने  से मना कर देता है। और कहता है की  प्रभु जब आपके चरणों से पत्थर की शिला नारी बन गई थी तुम्हारे पाँव जादूगर है। मेरी छोटी सी नाव पुरानी है यदि कुछ हो गया तो मै क्या करूँगा प्रभु श्रीराम के लाख समझाने पर भी केवट नहीं मानता है। बड़ी मुश्किल से तैयार होकर श्रीराम के सामने एक शर्त रखता है की प्रभु यदि आप मुझे आपके चरण पखारने दोगे तब ही मै आपको गंगा पार कराऊंगा।  श्रीराम तैयार हो जाते है और निषाद को अपने चरण पखारने देते है निषाद भगवान श्रीराम के चरण पखारकर अपने परिवार व कुल को तार लेते है। गंगा पार होने से पहले श्रीराम सखा  सुमंत को समझा कर वापस अयोध्या भेजते है।इस प्रकार निषाद श्रीराम, लक्ष्मण, सीता को गंगा पार कराते है माता सीता निषाद को गंगा पार का मेहनताना देना चाहती है जिसे निषाद लेने से मना कर देता है। और कहता की मुझे मेहनताना के बदले एक वचन दे की जब आप चौदह साल बाद वापस जायें तो आप मेरी नाव से ही गंगा पार करे। श्रीराम केवट की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वचन देते है इस प्रकार एक पालनहार को केवट ने गंगा पार कराया। इधर सखा सुमंत के वापस अयोध्या आकर राजा दशरथ के पास जाते है राजा दशरथ राम लक्ष्मण सीता के बारे में  पूछते है की कहा है और कैसे है। सुमंत बताते है की वह वापस नहीं आये और वन में ही है राजा दशरथ बहुत दुखी होते है। और उन्हें आभास होता है की मेरा निधन होने वाला है तब उन्हें श्रवण कुमार वाली घटना याद आती है और वह यह घटना सबको बताते है की जब आपका निधन होगा तब आपके पास आपके कोई पुत्र नहीं होंगे और आपका निधन पुत्र की याद में होगा। यह श्राप उन्हें श्रवण कुमार के पिताजी द्वारा दिया गया था यह बताने के बाद राम की याद में राजा दशरथ का निधन हो जाता है। निधन होने के बाद वशिष्ठ जी दूत को भेजकर ननिहाल से भरत शत्रुघन  को बुलाते है। भरत शत्रुघन अयोध्या आकर सीधे अपनी माता कैकई  से मिलने जाते है कैकई ननिहाल का सब हालचाल बताने के बाद भरत पूछते है की पिताजी व भैया राम कहा है l तब कैकई बताती है की मैंने आपके लिए राजा से दो वरदान मांगे की भरत को राजतिलक और राम को चौदह वर्ष का वनवास यह सुनकर भरत बहुत दुखी होते है और माता कैकई से कहते है की ऐसे वरदान मांगते समय तुम्हारी बुद्धि किसी ने हर ली थी क्या बहुत बुरा भला बोलने के बाद भरत माता कैकई से यह कहकर वहाँ निकलते है की मै अब आपके इस भवन में कभी नहीं आऊंगा। इसके बाद भरत शत्रुघन माता कौशल्या से मिलने जाते है। माता कौशल्या से मिलकर भरत क्षमा मांगते है की माता इसमें मेरा कोई दोष नहीं है और माता कौशल्या से बात कर श्रीराम दे मिलने के लिए वन चलने का कहते है माता कौशल्या तैयार हो जाती है। भरत कहते की कल सुबह श्रीराम से मिलने वन चलेंगे। वही केवट की भूमिका में पत्रकार शंकर राय के द्वारा अभिनय किया गया।