व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने के लिए कई प्रकार की बाधाओं से गुजरना पड़ता है। विद्वानों ने यह भी बताया है कि सफलता आसानी से प्राप्त नहीं होती है। उसके लिए परिश्रम, एकाग्रता और मन में कर्तव्य निष्ठा की भावना होना जरूरी है। शास्त्रों में भी सफलता के मार्ग को आसान नहीं बताया है। लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखने से व्यक्ति बिना रुके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। आइए जानते हैं शास्त्रों में किस तरह दिया गया है सफलता का ज्ञान।


उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति,कार्याणि न मनोरथै । न हि सुप्तस्य सिंहस्य,प्रविशन्ति मृगाः ।।

इस श्लोक के माध्यम से बताया गया है की प्रयत्न करने से ही सभी कार्य पूर्ण होते हैं। जिस तरह केवल इच्छा से शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं प्रवेश करता है। उसको अपनी भूख को मिटाने के लिए जंगल में शिकार करने जाना ही पड़ता है। उसी तरह व्यक्ति को भी सफलता व असफलता की चिंता किए बिना ही प्रयत्न करते रहना चाहिए।

पातितोऽपि कराघातै-रुत्पतत्येव कन्दुकः । प्रायेण साधुवृत्तानाम-स्थायिन्यो विपत्तयः ।।

इस श्लोक के माध्यम से बताया गया है कि जिस तरह हाथ से छूटती हुई गेंद भूमि पर गिरने के बाद ऊपर की ओर उठती है। उसी तरह सज्जनों का बुरा वक्त भी थोड़े ही समय के लिए रहता है इसके बाद उनके जीवन में भी एक बड़ा उछाल आता है और वह सफलता की ओर फिर से बढ़ चलते हैं। इसलिए व्यक्ति को अपना स्वभाव हमेशा सरल और सज्जन रखना चाहिए।

अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत् । शनै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ।।

इस श्लोक के माध्यम से जीवन की एक अहम शिक्षा दी जा रही है। इसमें बताया गया है कि व्यक्ति को अधिक इच्छाएं नहीं रखनी चाहिए। लेकिन उन सीमित इच्छाओं का भी त्याग कभी नहीं करना चाहिए। उसे अपने धन का धीरे-धीरे इस्तेमाल करना चाहिए। इससे वह अपने लक्ष्य पर एकाग्र रहेगा और भविष्य में आने वाली परेशानियों से बचा रहेगा।