छत्तीसगढ़ में माओवाद के खिलाफ इस ऑपरेशन में जवानों को बड़ी सफलताएं मिल रही हैं. 2004 की आंध्र प्रदेश सरकार और माओवादी संगठनों के बीच हुई ऐतिहासिक शांति वार्ता में एक नाम प्रमुखता से सामने आया था- सुधाकर उर्फ तेन्टू लक्ष्मी नरसिम्हा चालम. एक ओर वो माओवादी संगठन की रणनीतिक धुरी था, तो दूसरी ओर वार्ता की मेज़ पर सरकार से आमने-सामने बात करने वाले गिने-चुने शीर्ष नेताओं में से एक था.

नल्लमाला के जंगलों से निकलकर गुट्टिकोंडा बिलम की जनसभा और फिर हैदराबाद की वार्ता टेबल तक पहुंचना, सुधाकर के राजनीतिक सफर का एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ. एक ऐसा मोड़, जहां हिंसा के लंबे दौर के बीच संवाद की उम्मीद जागी थी.

कौन था सुधाकर?

तेन्टू लक्ष्मी नरसिम्हा चालम, जिन्हें सुधाकर, गौतम, आनंद, आरआर, चांति बालकृष्ण, सोमन्ना जैसे कई उपनामों से जाना जाता है. वो माओवादी संगठन की केंद्रीय समिति (CCM) के सदस्य है. वो तकनीकी टीम और क्षेत्रीय राजनीतिक विद्यालय (REPOS) के प्रभारी भी था. सुधाकर पर इनाम घोषित था और वह तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में सक्रिय माओवादी नेटवर्क का अहम हिस्सा माना जाता था. बीजापुर जिले में गुरुवार को सुरक्षाबलों और माओवादियों के बीच भीषण मुठभेड़ में सुधाकर को मार गिराया गया.

आंध्र प्रदेश के एलुरु जिले के प्रगदवरम गांव के निवासी सुधाकर की उम्र 2025 में 65 वर्ष थी. वो वेलमा जाति (पिछड़ा वर्ग) से आता था. बताया जाता है कि उनके पिता, रामकृष्ण नायडू, विजयनगरम से एलुरु जिले में आकर बसे थे. माता का निधन लगभग पांच वर्ष पूर्व हुआ. उसका भाई आनंद राव अब भी सत्यवलु गांव में रहता है.

शिक्षा से लेकर माओवाद जीवन का सफर

सुधाकर ने कक्षा 6वीं से 10वीं तक की पढ़ाई ZP हाई स्कूल पेदापाडु गांव से की और इंटरमीडिएट की पढ़ाई सीआर रेड्डी कॉलेज एलुरु से की. इसके बाद उसने आयुर्वेदिक चिकित्सा की पढ़ाई विजयवाड़ा में शुरू की लेकिन बीच में छोड़ दी. पढ़ाई से रुचि हटने के बाद उसने माओवाद का रुख अख्तियार कर लिया. उसने 2001 से 2003 तक आंध्र-ओडिशा बॉर्डर स्पेशल ज़ोन कमेटी (AOBSZC) के सचिव के रूप में कार्य किया.

2004 में सुधाकर उस समय चर्चा में आए जब माओवादी संगठन PW (People’s War) और जनशक्ति (JS) के प्रतिनिधियों के साथ आंध्र प्रदेश सरकार की वार्ता टीम में शामिल हुए. सुधाकर उस समय नल्लमाला जंगल से बाहर आए और गुट्टिकोंडा बिलम में एक विशाल जनसभा को संबोधित किया. सुधाकर की पत्नी ककराला गुरु, एलियाज उर्फ गुजरी भी एक सीनियर माओवादी लीडर है. जो एक मोबाइल पॉलिटिकल स्कूल में है. जो माओवादियों को अत्याधुनिक रूप से संगठनात्म गतिविधियों की शिक्षा और प्रचार प्रसार के तरीकों से ट्रेंड करती थी.

शांति वार्ता में मुख्य भूमिका

11 अक्टूबर 2004 को सुधाकर, रामकृष्ण उर्फ RK (APSC सचिव), और गणेश (NTSZC सदस्य) ने माओवादी संगठन का प्रतिनिधित्व करते हुए पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने आकर वार्ता प्रक्रिया की शुरुआत की. अगले दिन हैदराबाद पहुंचने के बाद उन्हें मंजेरा गेस्ट हाउस में ठहराया गया. 15 से 18 अक्टूबर तक डॉ. एमसीआर IHRD, हैदराबाद में आयोजित वार्ता के दौरान कई अहम मुद्दों पर गंभीर चर्चा हुई.

  • हथियार डालने की संभावनाएं
  • बातचीत के दौरान संघर्ष विराम बनाए रखना
  • अतिरिक्त भूमि का वितरण
  • राजनीतिक कैदियों की रिहाई
  • क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े लोगों पर दर्ज मामलों को वापस लेना
  • माओवादियों के सिर पर घोषित इनामों को हटाना
  • निजी सशस्त्र गिरोहों पर कठोर कार्रवाई करना

यह बातचीत उस समय के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पहल थी, लेकिन यह लंबे समय तक टिक नहीं सकी.

माओवादी संगठन में बाद की भूमिका

2007 में सुधाकर ने REPOS (क्षेत्रीय राजनीतिक विद्यालय) में काम किया और फिर माड़ क्षेत्र में सक्रिय हो गया. वो तकनीकी टीम का प्रमुख सदस्य रहा, जो संगठन के संचार और रणनीतिक समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

विवाद और आपराधिक मामले

सुधाकर पर कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें पुलिस के साथ मुठभेड़ और हिंसक घटनाएं शामिल हैं:

  • 17 मार्च 2003 – सिलेरु थाना, ASR जिला: बल्लुनिरी गांव के पास मुठभेड़, जिसमें दो माओवादी मारे गए.
  • 21 जून 2006 – मक्कुवा थाना, PVP मन्यम जिला: येरे समंथला वलसा गांव के पास मुठभेड़.
  • 2007 – एल्विनपेटा थाना क्षेत्र: IPC की धारा 307, 120(b) और विस्फोटक अधिनियम की धाराएं.
  • 2008 – अन्नवरम थाना क्षेत्र: हत्या, लूट, अपहरण और आर्म्स एक्ट के तहत गंभीर धाराएं.

आज की स्थिति

2025 में भी सुधाकर माओवादी संगठन के सक्रिय और महत्वपूर्ण नेता बना हुआ था. तकनीकी ढांचे, वैचारिक शिक्षा और संगठनात्मक संचार का संचालन कर रहा था. उसके जैसे नेताओं की गतिविधियां आज भी कानून व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बनी हुई हैं.