भोपाल । प्रदेश में शायद ही ऐसा कोई काम है, जो तय समय में पूरा होता हो । फिर मामला सडक़ निर्माण से लेकर भवन निर्माण का ही क्यों न हो। ऐसे मामलों में सरकारी अफसरों से लेकर सरकार तक लापरवाहों पर कोई कार्रवाई नहीं करती है, लिहाजा प्रदेशवासियों की नियत ही बन गई है, लेटलतीफी का शिकार होने की। ऐसा ही नया मामला है राजधानी भोपाल को सोलर सिटी बनाने का। शहर को तीन माह में सोलर सिटी बनाने का लक्ष्य तय किया गया था। अब दो माह का समय गुजर गया है, लेकिन काम महज पांच फीसदी भी नहीं हो पाया है।  दरअसल सोलर सिटी बनाने के लिए शहर में 25 हजार सोलर प्लांट तीन माह में लगाने का तय किया गया था, लेकिन अब तक शहर में एक हजार प्लांट ही नहीं लग सके हैं। यह हाल तब है जबकि, इस मामले में स्वयं प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं। योजना के तहत सोलर प्लांटों के माध्यम से शहर में 1100 मेगावाट के उत्पादन का लक्ष्य तय किया गया है। इससे यह तो तय है कि अगर इसी गति से काम जारी रहा तो लक्ष्य को हासिल करने में तीन माह की जगह पूरे पांच साल का समय लगेगा।
केंद्र सरकार ने हर घर से सोलर एनर्जी उत्पादित करने के लिए तीन किलोवॉट तक के प्लांट पर सब्सिडी 54 हजार रुपए से बढ़ाकर 78 हजार कर दी है। बावजूद इसके आमजन को इसकी जानकारी ही नहीं है। इस वजह से लोगों द्वारा इस मामले में रुचि ही नहीं ली जा रही है। यदि योजना को सही तरीके से समझाया जाए और उसका प्रचार प्रसार किया जताए तो लोगों द्वारा इस मामले में रुचि ली जा सकती है। इसके अलावा कालोनियों में सामूहिक रुप से भी ं सोलर प्लांट लगाए जा सकते हैं।
शहर में रहती है 2200 मेगावाट की मांग
अगर भोपाल शहर की बात की जाए तो एक दिन में बिजली की मांग औसतन रूप से 2200 मेगावाट की रहती है। शासन ने इसका 50 फीसदी यानी 1100 मेगावाट उत्पादित करने का लक्ष्य तय किया है। योजना के तहत इस योजना से आम उपभोक्ताओं को जोडऩा है। इसके पीछे सरकार की मंशा कार्बन उत्सर्जन नियंत्रित कर क्लीन केपीटल के साथ ग्रीन केपीटल बनाने की है। दरअसल 1100 मेगावाट सोलर एनर्जी की क्षमता 285 लाख पेड़ों के बराकर कार्बन उत्सर्जन सोखने की होती है। इसके अलावा प्रदेश में बिजली की कमी तो दूर होगी है, साथ ही बिजली उत्पादन पर खर्च की जाने वाली राशि में कमी आएगी।