बैतूल स्टेशन स्थापना तिथि - 01/05/1913

( 1 मई बैतूल स्टेशन के स्थापना दिवस पर इतिहास की यादें)

स्टेशन मास्टर साहब की मजार ——- आजादी के बाद बर्मा से भारत लौटे थे रहीम साहब

लेखन - वीरेन्द्र कुमार पालीवाल स्टेशन प्रबंधक बैतूल

बैतूल जिला मुख्यालय स्थित रेलवे स्टेशन के एक रोचक इतिहास से आपको अवगत करवाना चाहता हूँ। बैतूल स्टेशन के आज स्थापना दिवस के अवसर पर यह इतिहास और भी प्रासंगिक हो जाता है। बैतूल से इंदौर जाने वाले मार्ग पर स्टेशन से 1.5 किलोमीटर की दुरी पर माचना नदी के पास बनी ईदगाह के सामने सड़क के दूसरी ओर स्थित अब्दुल रहीम साहब रहमतउल्लाह अलैह की मजार पर वहां से गुजरने वालों की नज़र बरबस ही पड़ जाती है। मजार के सामने एक बोर्ड भी लगा हुआ है जिस पर स्टेशन मास्टर साहब की मजार भी लिखा है। परन्तु इसके इतिहास को बहुत ही कम लोग जानते हैं, जो बेहद ही रोमांचक और रोचक है। उनके लिए यह जानकारी चौकाने वाली हो सकती है रहीम साहब कभी बैतूल रेलवे स्टेशन पर स्टेशन मास्टर के रुप में पदस्थ रह चुके हैं। उनके इंतकाल के बाद उनके अनुयायियों ने उनकी मजार ईदगाह के पास बनाई। रहीम साहब बर्मा देश की आजादी के बाद स्वेछा पर बैतूल आए थे एवं उनके साथ ही अन्य 15 लोगों का जत्था भी भारत लौटा था, वे सभी रेलवे में पदस्थ थे। बर्मा की आजादी के बाद वहां की सरकार के भारत सरकार से निवेदन पर इन 15 भारतीय नागरिकों को बर्मा में जो पद था उसी पद पर नियुक्ति दी गयी थी। बर्मा से लौटे इनमें से 9 लोगों को नागपुर मंडल में पदस्थ किया गया था ।
     मेरे द्वारा अब्दुल रहीम साहब रहमतुल्लाह अलैह की मजार की जानकारी वाट्सएप पर साथियों से साझा की गयी तो जिले के इतिहास से जुड़े कुछ और तथ्य सामने आए। स्टेशन मास्टर साहब की मजार को लोग पीर साहब की मजार भी कहते है। उनके अनुयायी यहां सजदा करते है, मजार पर चादर चढ़ाकर दुआएं मांगते है। यह जानकारी जब अमृतसर निवासी 80 वर्षीय सेवानिवृत स्टेशन मास्टर श्री अवतार सिंह एडन तक वाट्सएप के माध्यम से पहुंची तो उन्होंने मुझसे फोन पर रहीम साहेब के बारे में रोचक जानकारियां साझा की। श्री अवतार सिंह बैतूल में स्टेशन मास्टर रह चुके हैं एवं उनके पिता श्री सरदार सोहन सिंह भी नागपुर मंडल में स्टेशन मास्टर थे जो बर्मा से रहीम साहेब के साथ ही भारत लौटे थे।

सेवा निवृत्त स्टेशन मास्टर श्री अवतार सिंह एडन के मुताबिक उनके पिता सरदार सोहन सिंह के साथ ही अब्दुल रहीम साहब बर्मा से वर्ष 1951 में भारत लौटे थे। बर्मा से जहाज से 15 लोगों का जत्था 15 वर्ष की नौकरी पूरी कर ट्रांसफर पर जलमार्ग से कोलकाता आया था। ये सभी बर्मा में ही रेलवे में पदस्थ थे। बर्मा सरकार ने भारत सरकार से निवेदन कर, सभी 15 लोगों को भारतीय रेलवे में उसी पोस्ट पर रखने का निवेदन किया था जिस पोस्ट पर वे बर्मा में पदस्थ थे। इन सभी को रेलवे में पदस्थापना दी गई। श्री अवतार सिंह ने बताया कि उनके पिता सरदार सोहन सिंह और अब्दुल रहीम साहब के अलावा सात और लोगों को नागपुर मंडल में स्टेशन मास्टर के रुप में नियुक्त किया गया था वहीं बाकी लोगों को झांसी डिवीजन भेजा गया था। हैरत की बात यह है कि जब अवतार सिंह अपने पिता के साथ म्यांमार (बर्मा) से जब भारत लौटे थे उनकी उम्र मात्र 8 वर्ष थी आज वे 80 वर्ष के है लेकिन उन्हें हर एक बात जबानी याद है।

बैतूल निवासी श्री सुरेश दुबे ने बताया कि स्वेछा से बर्मा से अपने मित्र रहीम चचा के साथ भारत आने वालों में उनके पिताजी स्वर्गीय श्री पी डी दुबे भी थे जो बैतूल में ही लम्बे समय तक स्टेशन मास्टर के रूप में पदस्थ रहे। स्वर्गीय श्री बी डी दुबे आज़ादी के समय भारतीय सेना में थे एवं सेवानिवृति के बाद रेलवे में स्टेशन मास्टर के रूप में भर्ती हुए थे। अपने पिताजी द्वारा सुंदर अक्षरों में हस्तलिखित स्वयं की बायोग्राफी उनके बेटे श्री सुरेश ने बहुत ही सहेज कर रखी है जो कई एतिहासिक जानकारियां प्रदान कर सकती है।

बैतूल में ली अंतिम सांस, मजार पर लिखा है नाम

चूँकि रहीम साहब झाड़-फूंक कर बीमार लोगों का इलाज करते थे एवं लोगों को आराम भी मिल जाता था इस कारण उनके परिचितों में उनका बड़ा सम्मान भी था । अब्दुल रहीम साहब 1970 के दशक बैतूल स्टेशन पर पदस्थ रहे। बर्मा से लौटने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग जम्बाड़ा रेलवे स्टेशन पर हुई थी। इसके बाद बैतूल रेलवे स्टेशन मास्टर रहते हुए वे सेवा निवृत्त हुए। रहीम साहब ने बैतूल में ही अंतिम सांस ली, उनकी मजार कर्बला घाट पर मनाई गई है। स्टेशन से 1.5 किमी दूर स्थित मजार आज भी लोगों के लिए कौतुहल का कारण है।

वीरेन्द्र कुमार पालीवाल स्टेशन प्रबंधक बैतूल

बैतूल - दि. 01/05/2024