केदारनाथ धाम ज्योतिर्लिंग देवभूमि उत्तराखंड में स्थित है. हर साल लाखों श्रद्धालु यहां महादेव के दर्शन करने आते हैं और इस स्थान की अलौकिकता से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. केदारनाथ धाम ज्योतिर्लिंग का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है. बाबा केदारनाथ का यह धाम भी बारह ज्योतिर्लिंगों में गिना जाता है. इस धाम की विशेषता यह है कि यहां साल के छ: महीने मंदिर के कपाट खुले रहते हैं और बाकी समय में ये कपाट भक्तों के लिए बंद रहते हैं. इस धाम के दर्शन के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं. साथ में वे इस स्थान की अलौकिकता को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.माना जाता है कि केदारनाथ के दर्शन करने के बाद ही बाबा बद्रीनाथ के दर्शन किए जा सकते हैं, साथ ही धर्म ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि यहां बाबा केदारनाथ के साथ नर-नारायण के दर्शन करने से सारे पाप धुल जाते हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है.

आइए जानते हैं केदारनाथ धाम से जुड़े रोचक तथ्यों को

कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद, पांडवों पर अपने भाइयों और रिश्तेदारों की हत्या का आरोप लगा, तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें भगवान शिव से क्षमा मांगने का सुझाव दिया. लेकिन शिव पांडवों को क्षमा नहीं करना चाहते थे. इसलिए पांचों को दिखाई न देने के लिए उसने बैल यानी नंदी का रूप धारण किया था और पहाड़ों में मौजूद मवेशियों के बीच छिप गया था.

लेकिन गदाधारी भीम ने उन्हें देखते ही पहचान लिया और शिव जी का यह भेद सबके सामने आ गया. लेकिन जब भोलेनाथ ने वहां से भी किसी दूसरी जगह जाने की कोशिश की तो भीम ने उन्हें रोक दिया और शिवजी को उन्हें माफ करना पड़ा जिस स्थान पर पांडव शंकर जी से मिले थे, उस स्थान को गुप्त काशी के नाम से जाना जाता है.

लेकिन कुछ ही समय बाद भोलेनाथ गुप्तकाशी से भी गायब हो गए और पांच सिद्ध रूपों में प्रकट हुए. वह पांच रूपों में है - केदारनाथ के कूल्हे हैं, रुद्रनाथ का चेहरा है, तुंगनाथ के हाथ हैं और मध्यमहेश्वर का पेट है. कल्पेश्वर में महादेव की जटाएं मौजूद हैं इन पांच सिद्ध स्थानों को पंच केदार के नाम से भी जाना जाता है.

मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
भगवान शिव का यह भव्य मंदिर मंदाकिनी नदी के घाट पर स्थित है. मंदिर के गर्भगृह में भोलेनाथ के दर्शन होते हैं. यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है, जिससे इस स्थान का महत्व और भी बढ़ जाता है.

स्त्रों में कहा गया है कि केदारनाथ धाम में पहला मंदिर पांचों पांडवों ने बनवाया था. लेकिन समय के साथ यह गायब हो गया. तब आदिगुरू शंकराचार्य जी ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था. खास बात यह है कि इस मंदिर के पीछे उनकी समाधि भी मौजूद है.