चेक बाउंस के मामले में आरोपी को 2 साल का सश्रम कारावास

परिवादी को चेक राशि के साथ ही प्रतिकर राशि देने के आदेश

बैतूल। जिला न्यायालय ने चेक बाउंस के मामले में आरोपी को 2 साल का सश्रम कारावास व आर्थिक दंड से दंडित किया है। परिवाद में सुनवाई के दौरान न्यायालय ने अभियुक्त अखलेश राठौर पिता गणेशप्रसाद राठौर को दोषी माना है। अभियुक्त को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी विजय चौहान ने 2 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। परिवादी नागरिक बैंक के अधिवक्ता सुधाकर पवार ने बताया कि अभियुक्त पर यह आक्षेप है कि उसने 19 जुलाई 2015 को 5 लाख रूपये की राशि का चेक बैतूल नागरिक सहकारी बैंक मर्या सिविल लाईन बैतूल को प्रदान किया था। परिवादी उक्त चेक के नगदीकरण हेतु बैतूल नागरिक सहकारी बैंक मय सिविल लाईन बैतूल में प्रस्तुत किया गया था, किंतु आरोपी के खाते में पर्याप्त निधि न होने के कारण अनादरण हो गया। अनादरण की सूचना दिनांक 1 अगस्त 2019 को प्राप्त होने के कारण राशि का भुगतान नहीं किया जा सका तथा सूचना उपरात भी आरोपी ने परिवादी को राशि का भुगतान नहीं किया जो परकाम्य लिखत अधिनियम की धारा -138 के अंतर्गत दण्डनीय अपराध है।

प्रकरण में स्वीकृत तथ्य यह है कि बैतूल नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित बैतूल से व्यवसाय हेतु आरोपी की 6 लाख रूपये की व्यवसायिक लिमिट 20 जनवरी 2008 को स्वीकृत की थी। आरोपी व परिवादी के मध्य हुये सव्यवहार के तहत आरोपी को नियमित ऋण की किश्ते अदा करना था, जिसकी संपूर्ण जवाबदारी आरोपी की थी। आरोपी द्वारा नियमित किश्ते अदा न करने के कारण बैंक की किश्ते थकित हो गई थी, जिसकी अदायगी हेतु आरोपी द्वारा बैतूल नागरिक सहकारी बैंक शाखा को चेक प्रदत्त किया था। आरोपी के आश्वस्त किये जाने के उपरात परिवादी बैंक द्वारा उक्त चेक परिवादी के खाते में दिनांक 19 जुलाई 2015 को जमा किया, किंतु आरोपी के खाते में निधि कम होने के कारण उक्त चेक अनादरित हो गया। चेक अनादरण की रजिस्टर्ड सूचना परिवादी द्वारा अपने अधिवक्ता के माध्यम से आरोपी को प्रेषित कर चेक राशि की मांग की, किंतु आरोपी द्वारा नियत समयावधि में चेक राशि जमा नहीं की गई। न्यायालय ने सभी तथ्यों के आधार पर परिवाद में सुनवाई करते हुए यह प्रतिपादित किया है कि परकाम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के मामलों में दोषसिद्धी की दशा में चेक की राशि और उस पर 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज को ध्यान में रखा जाना चाहिये और परिवादी को हुये नुकसान की युक्तियुक्त पूर्ति किस राशि से होगी यह भी ध्यान देना चाहिये। अभियुक्त के कृत्य के कारण परिवादी जुलाई 2015 से 5 लाख रूपये के उपयोग उपभोग से वंचित रहा है। परिवादी की आर्थिक हानि और असुविधा को देखते हुये परिवादी को चेक राशि के साथ ही प्रतिकर के रूप में राशि दिलाया जाना उचित प्रतीत होता है। फलतः अभियुक्त 357 ( 3 ) दंप्रसं के अंतर्गत परिवादी को प्रतिकर स्वरूप 8 आठ लाख 25 हजार रूपये निर्णय दिनांक से अपील अवधि के पश्चात अदा करने के आदेश जारी किए गए है। अन्यथा की दशा में अभियुक्त को दो माह का सश्रम कारावास पृथक से भुगताने का उल्लेख किया है।