भोपाल । हिजाब विवाद मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कालेज की लड़कियों की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया है। साथ ही अपने आदेश में कहा है कि इस्लाम में हिजाब पहनना अनिवार्य नहीं है। इस फैसले के मद्देनजर कर्नाटक के कई जिलों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। साथ ही बेंगलुरु में सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी तरह का प्रदर्शन करने, आंदोलन, विरोध या समारोह पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। इसके अलावा हिजाब मामले में फैसला सुनाने वाले जज के घर पर भी सुरक्षा बढ़ा दी गई है।

जिस संस्थान में पढ़ते हैं, उसके नियम मानना चाहिए

हिजाब एक अच्छा परिधान है। इसमें कोई शक नहीं है। कई बहनें इसे पहनती हैं। जो लोग इसे इस्लाम पर हमला कह रहे हैं, उनसे मैं यही सवाल करता हूं कि आप कुरान को सबसे ऊपर समझते हैं न। आप मुझे दिखा दें कि कुरान में किस जगह पर हिजाब पहनना अनिवार्य लिखा गया है? हमें यह समझना होगा कि इस्लाम में यह अनिवार्य आदेश नहीं है। यह बस अच्छे आचरण के तहत अपेक्षित है। यह विवाद बहुत छोटे से मुद्दे पर है, जिसे आसानी से सुलझाया जा सकता था। एक शिक्षण संस्थान की कमेटी ने नियम बनाया कि कालेज में हिजाब पहनकर न आएं। यह एक संस्थान का नियम है तो इसे उसमें पढ़ने वालों को मानना चाहिए। ऐसा करने के पीछे संस्थान की सोच भी देखनी चाहिए कि कक्षा में सभी बच्चों को एक समान दिखना चाहिए। जैसे जो व्यक्ति पुलिस में हैं तो वह पुलिस की तरह दिखें, डाक्टर हैं तो डाक्टर की तरह दिखें... ऐसे में अगर हम स्कूल जाते हैं, तो स्कूल के विद्यार्थी की तरह दिखें। हमारे ऊपर मजहब का कोई निशान न हो। हम अलग-थलग न दिखें। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। जो लोग विवाद कर रहे हैं, उनको यही समझाना चाहता हूं कि ये कोई इस्लाम या मजहब पर हमला नहीं है क्योंकि अगर ये इस्लाम पर हमला होता, तो हमारी ऐसी भी कई बहनें हैं, जो हिजाब नहीं पहनतीं। क्या इससे इस्लाम पर हमला नहीं होगा?

अदालत के फैसले का सम्मान करना चाहिए

हर व्यक्ति को अदालत के फैसले का सम्मान करना चाहिए। हमने मंदिर और तीन तलाक पर आए फैसले का सम्मान किया है तो हिजाब का मामला कोई बड़ा नहीं है। कोर्ट ने सिर्फ कक्षा में हिजाब पहनने पर रोक लगाई है। मेरा मानना है कि शिक्षण संस्थानों में एक कमरा बनना चाहिए, जहां पर बच्चे अपना हिजाब रखकर कक्षा में जा सकें। वे स्कूल-कालेज की बाउंड्री में हिजाब उतारें और लाकर में रख दें। जाते समय उसे पहनकर जाएं। जिन लोगों को लगता है कि कक्षा में भी हिजाब जरूरी है वे अपने हिसाब से धार्मिक स्कूलों का चयन करें, जहां ये कक्षा में भी पहनने की इजाजत हो।

शिक्षण संस्थानों में ड्रेस कोड का पालन जरूरी

सरकारें स्वयं मुस्लिम महिलाओं को व्यक्त करने के लिए विज्ञापनों में बुर्का और हिजाब पहनी महिलाओं को दिखाती हैं। मुस्लिम पुरुष को व्यक्त करने के लिए टोपी पहने व्यक्ति को दिखाया जाता है। इसका मतलब यही है कि ये पहनावा मुस्लिम धर्म की पहचान है, लेकिन शिक्षण संस्थानों में ड्रेस कोड का पालन हर धर्म के विद्यार्थी को करना चाहिए। संविधान के अनुसार चलें और छोटी-मोटी बातों पर गौर करके अपने अधिकारों से वंचित न हों। मेरा मानना है कि इस फैसले के खिलाफ अपील करने की कोई जरूरत नहीं है।