भोपाल । प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लाख कोशिश के बाद भी विभागों की लापरवाही और भर्राशाही कम होने का नाम नहीं ले रही है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि विभाग सरकार की मंशानुसार काम नहीं कर पा रहे हैं। कई-कई विभागों में तो नकारा अधिकारियों-कर्मचारियों के कारण फाइलों का अंबार लगा रहता है। ऐसे में सरकार विभागों में सेवानिवृत्त नौकरशाहों को तैनात करने की नीति पर काम कर रही है। ये अफसर विभागों की कुंडली खंगालकर सरकार को रिपोर्ट देंगे।
गौरतलब है कि सरकार की कोशिश है कि प्रदेश के हर विभाग में जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम हो और सुशासन का एहसास जनता को हो। इसके लिए राज्य सरकार ने अब प्रदेश के सरकारी विभागों में जांच के लिए रिटायर्ड आइएएस, आइपीएस और आइएफएस अफसरों को रखने जा रही है। रिटायर्ड अफसरों को तीन साल के लिए रखा जाएगा। ये अफसर विभागों में अफसर, कर्मियों की विभागीय जांच करेंगे। सरकार ने अफसरों के पैनल बनाने के आदेश जारी किए हैं। हर साल पैनल का रिव्यू होगा। उक्त अफसर को इस पैनल के लिए सामान्य प्रशासन विभाग को 21 जुलाई तक आवेदन करना होगा। चयन के बाद विभागीय जांच पर तय राशि अफसरों को दी जाएगी। अभी ऐसी नियुक्ति के अलग से नियम जारी किए जाएंगे।
प्रदेश के शासकीय विभागों में लापरवाही और लालफीताशाही किसी से छिपी नहीं है। सामान्य प्रशासन विभाग का मानना है कि विभागीय जांच के जल्द निपटारे के लिए ऐसी व्यवस्था की जरूरत है। अभी विभागों में बरसों से जांच लंबित रहती हैं। सामान्य प्रशासन विभाग की चयन समिति ने ऐसी व्यवस्था की सिफारिश की थी। रिटायर्ड आइएएस, आइपीएस, आइएफएस अफसरों का पैनल राज्य स्तर पर रहेगा। गृह विभाग, सामान्य प्रशासन, वन या अन्य विभाग पैनल से संबंधित अफसर की सेवा लेकर विभागीय जांच कराएंगे। रिटायर्ड अफसर अपने कार्य-सेक्टर संबंधित विभाग की जांच करेंगे। रिटायर्ड आइएसएफ अफसर वन तो आइपीएस पुलिस संबंधी मामलों की जांच करेंगे। रिटायर्ड आइएएस किसी भी विभाग की जांच कर सकेंगे।
सरकार ये नई व्यवस्था इसलिए ला रही है, ताकि उसके सामने यह स्थिति साफ हो जाएगी कि आखिरकार विभागों में काम की गति रफ्तार क्यों नहीं पकड़ पा रही है। साथ ही विभागों में अटकने वाले कामकाज की वजह भी सामने आएगी। दरअसल, माना जाता है कि शासकीय कार्यालयों में बिना लेन-देन के काम नहीं होता है। ऐसे में सरकार द्वारा तैनात किए जा रहे अफसर इस व्यवस्था की हकीकत का आंकलन कर सरकार को देंगे। जिसके बाद सरकार निगरानी व्यवस्था दुरुस्त करेगी।  अभी प्रदेश में सेवानिवृत्त आइएएस या अन्य अखिल भारतीय सेवा के अफसरों की प्रशासनिक कामकाज में अस्थायी सेवाएं ली जाती रही हैं। आयोग बोर्ड, मंडल या विभिन्न प्रकार की कमेटियों में सेवानिवृत्त अफसरों को मौका दिया जाता रहा है। विभागीय जांचों के लिए यह पहल पहली बार है।
मप्र में कई विभागों को भ्रष्टाचार का गढ़ माना जाता है। ये वे विभाग हैं, जहां जनता के लिए सबसे अधिक योजनाएं, परियोजनाएं बनाई और संचालित की जाती हैं। खासकर जिन विभागों में काम ठेकेदार या एजेंसियां करती हैं, वहां सबसे अधिक भ्रष्टाचार होता है। इसलिए सरकार ने रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों को उनके अनुभव के आधार पर विभागों में पदस्थ करने की योजना बनाई है। लेकिन रिटायर्ड अफसरों को जांच की जिम्मेदारी देने पर सवाल यह भी उठ रहा है कि इसमें कितनी जवाबदेही रहेगी। विभागीय जांच में अधिकतर मामले भ्रष्टाचार के होते हैं। इनमें अफसर-कर्मी रहते हैं। सेवारत अफसर के जांच करने पर गलत जांच या गड़बड़ होने पर जिम्मेदारी तय होती है। रिटायर्ड अफसरों की जांच में ऐसा होने पर उनकी अधिक जवाबदेही नहीं रहेगी, क्योंकि वे नौकरी में नहीं है।