मुंबई । महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन कराने में भाजपा की भूमिका अहम रही अब शिवसेना में विग्रह कराने के बाद उसके निशाने पर राकांपा हो सकती है। शरद पवार की पार्टी के ज्यादातर नेताओं पर लगे कथित भ्रष्टाचार के आरोप ही उनके लिए सबसे बड़ी मुश्किल बन सकते हैं। इसीलिए राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि शिवसेना के बाद अब एनसीपी में बगावत की बारी है। बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को साफ लग रहा है कि महाराष्ट्र में एनसीपी को कमजोर किए बिना उसके लिए केंद्र में लोकसभा की सीटों को बढ़ाना और राज्य में फिर से सरकार लाना आसान नहीं होगा। एनसीपी के कई नेता निजी बातचीत में यह जिक्र कर रहे हैं कि केंद्रीय जांच एजेंसियों की महाराष्ट्र की राजनीति में सक्रियता बनी रही, तो सरकार बदलने के साथ पवार की पार्टी के कई नेता बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। एनसीपी में फूट के लिए बीजेपी के निशाने पर कमजोर कड़ी वे विधायक भी हैं, जिन्हें मौजूदा परिस्थितियों में अगले विधानसभा चुनाव में एनसीपी के टिकट पर जीत मुश्किल लग रही है। इन विधायकों की संख्या 30 से ज्यादा बताई जा रही है।
राकांपा के दो तत्कालीन मंत्री नवाब मलिक और अनिल देशमुख महीनों से जेल में हैं। मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में एकनाथ खडसे की कुछ प्रॉपर्टी ईडी ने पहले ही कुर्क कर ली है। कुछ वक्त पहले अजित पवार व उनके परिवार पर जो छापे पड़े थे, वह संकेत था। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि अजित पवार को फिर निशाना बनाया जा सकता है। अजित पवार की 2019 में देवेंद्र फडणवीस के साथ 72 घंटे की सरकार ने जो जांच बंद कर दी थी, उसके फिर खुलने की बात से इनकार नहीं किया जा सकता। नई सरकार बनते ही धनंजय मुंडे की आधी रात में देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात भी किसी नई परेशानी से बचाव के तौर पर देखी जा रही है। महाराष्ट्र में मराठा 30 फीसदी हैं। बीजेपी महाराष्ट्र में शरद पवार की जमीनी ताकत जानती है। खासकर मराठा राजनीति में ग्राउंड लेवल पर पवार की दमदार क्षमता का बीजेपी को भान है। इसी को बैलेंस करने के लिए अब बीजेपी के पास सरकार में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, पार्टी में प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत दादा पाटील और विधानसभा में अध्यक्ष राहुल नार्वेकर तीनों मराठा नेता हैं। चर्चा है कि मुख्यमंत्री पद से फडणवीस की विदाई भी इसी योजना का हिस्सा है। ऐसे में, एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने शरद पवार और ठाकरे परिवार दोनों की विरासत को सीधे चोट पहुंचाते हुए आगे की रणनीति तय कर दी है। अब उन्हीं के जरिए 2024 के आम चुनावों में मराठों को साधना आगामी योजना का हिस्सा है।
एनसीपी प्रमुख शरद पवार के घर में भी भतीजे अजित पवार और बेटी सुप्रिया सुले के बीच वर्चस्व की जंग जारी है। शरद पवार के विश्वसनीय लोग फिलहाल सुप्रिया के साथ हैं। अजित पवार ने भी पार्टी में अपने भरोसेमंद लोगों का गुट तैयार कर लिया है। 2019 में फडणवीस के साथ मिलकर सरकार बनाने का अजित पवार का प्रयास और 2019 में मावल सीट से अजित पवार के बेटे पार्थ पवार का चुनाव हारना इसी जंग का परिणाम था।