आयोग ने कहा - मुख्य सचिव व संचालक, महिला बाल विकास चार सप्ताह में दें जवाब

श्योपुर  मध्यप्रदेश पर कुपोषण का कलंक सालों से है और सरकार कलंक मिटाने के लिये कुछ न कुछ कर भी रही है, लेकिन इसके लिए सरकारी रिकाॅर्ड में आंकड़ो की जो बाजीगरी हो रही है, वो हैरान करने वाली है। बात आदिवासी बाहुल्य श्योपुर जिले की है, जहां प्रदेश में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे हैं। यहां 3 साल पहले 4068 कुपोषित बच्चे रिकाॅर्ड में दर्ज थे, आज 715 ही हैं। यानी 87 प्रतिशत कुपोषण खत्म। आखिर ये हुआ कैसे ? एक समाचार पत्र ने जिला प्रशासन के दावों की पड़ताल की तो पता चला कि 2512 कुपोषित बच्चों ने जैसे ही 5 साल की उम्र पार की, अफसरों ने उन्हें रिकाॅर्ड से बाहर कर दियां इस तरह आधे से ज्यादा कुपोषण एक झटके में खत्म। नए कुपोषित बच्चों को रिकाॅर्ड में लिया ही नहीं। गोलीपुरा सहराना बस्ती जैसी आंगनवाड़ी की कार्यकर्ता के अनुसार वहां 25 बच्चे कुपोषित हैं लेकिन इनमें से एक भी सरकारी रिकाॅर्ड में नहीं है। कई आंगनवाड़ियों में कुपोषण नापने के लिए जरूरी उपकरण जैसे- वजन मशीन, लंबाई के लिए स्केल नहीं है। कई जगह रजिस्टर खाली हैं। कुछ आंगनवाड़ी तो ऐसी भी मिलीं, जिन्हें कार्यकर्ता ने 2500 रू. महीने पर ठेके पर दे रखा है। यही कारण है कि प्रशासन के रिकाॅर्ड में साल 2020 में जन्म लेने वाले 176 बच्चे कुपोषित थे तो 2021 में ऐसे 19 ही हुए। इस गंभीर मामले में संज्ञान लेकर मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने मुख्य सचिव, मप्र शासन, संचालक, महिला एवं बाल विकास विभाग, मप्र शासन और जिला कार्यक्रम अधिकारी, महिला एवं बाल विकास विभाग, श्योपुर से चार सप्ताह में तथ्यात्म्क जवाब मांगा है। साथ ही मुख्य सचिव व संचालक, महिला बाल विकास को यह भी निर्देशित किया है कि वे गत एक वर्ष की (माहवार) हर जिले की तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करें और विशेष रूप से यह तथ्य अवश्य स्पष्ट करें कि इसमें सख्या में कमी किस कारण से हो रही है ?