• हर माह सेना के औसतन 8 जवानों ने की आत्महत्या
  • नॉन-ऑपरेशनल स्ट्रेस सेना के जवानों में बहुत ज्यादा बढ़ा


नई दिल्ली । पिछले 5 सालों में हर माह सशस्त्र बलों के औसतन 8 जवानों ने आत्महत्या की है। इसकी जानकारी मोदी सरकार ने लोकसभा में दी है। मोदी सरकार की तरफ से जानकारी दी गई कि पिछले पांच सालों में कम से कम 819 जवानों ने आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाया है, जबकि मुद्दे के समाधान के लिए कई कदम उठाए गए हैं। रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में कहा कि पिछले 5 सालों में आर्मी ने आत्महत्या के कारण अपने 642 सैनिकों को खो दिया है, जबकि भारतीय वायुसेना में यह संख्या 148 और नौसेना में 29 है। गंभीर मुद्दे को हल करने के लिए उठाए गए कदमों पर अजय भट्ट ने कहा है कि सशस्त्र बलों में तनाव और आत्महत्या के मैनेजमेंट के लिए तनाव कम करने वाले मैकेनिज्म में सुधार के लिए लगातार उपाय विकसित किए जा रहे हैं। इसके लिए एक विस्तृत मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम तैयार किया गया है और यह कार्यक्रम 2009 से चालू है, जो जवान तनाव से गुजर रहे होते हैं, उनकी पहचान की जाती है। इसके साथ ही निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार यूनिट कमांडिंग ऑफिसर, रेजिमेंटल मेडिकल ऑफिसर और जूनियर ऑफिसर द्वारा उनकी काउंसलिंग की जाती है। रक्षा मंत्रालय के थिंक टैंक द युनाइटेड सर्विस इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (यूएसआई) ने साल की स्टडी के बाद पिछले साल एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि काउंटर इनसरजेंसी और काउंटर टेररिज्म के माहौल के अलावा नॉन-ऑपरेशनल स्ट्रेस सेना के जवानों में बहुत ज्यादा है। ऑपरेशनल स्ट्रेस जहां प्रोफेशन का हिस्सा है, वहीं नॉन ऑपरेशनल स्ट्रेस से बचा जा सकता है। इसमें कहा गया था कि स्ट्रेस का असर सैनिकों के स्वास्थ्य के अलावा युद्ध क्षमता पर भी पड़ता है। कहा गया है कि जेसीओ, जवानों और अफसरों में तनाव की अलग अलग वजहें हैं। उसके हिसाब से देखना और डील करना चाहिए। सशस्त्र बलों में तनाव और आत्महत्या के मैनेजमेंट के लिए कई कदम उठाए गए हैं। स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिए योग और ध्यान किया जाता है। इसके साथ ही मनोवैज्ञानिक काउंसलर की भी तैनाती की गई है।