ग्वालियर ।  अपने बच्चे को बेहतर शिक्षा दिलवा कर एक सुरक्षित भविष्य का सपना देखना अब लोगों के लिए मुश्किल हो गया है। अब तक जहां स्कूलों की फीस जुटाने में परिजनों की कमर टूट जाती थी वहीं अब बच्चे की किताबें खरीद में कई महीनों का घर का बजट हिल जाता है। कई स्कूल तो ऐसे हैं जिनमें किताबों का सेट 8 से 10 हजार रुपये तक है। एक तरफ स्कूली छात्रों के स्वजन परेशान हैं वहीं दूसरी ओर प्रशासन सब कुछ जानकर भी अनजान बना हुआ है। इसका परिणाम यह आ रहा है कि मजबूर लोग किताबें खरीदने के लिए दुकानों पर सुबह से ही लंबी लाइनें लगाकर खडे हो जाते है। भरी गर्मी में तपती धूप में लाइन लगा कर लोग अपने बच्चों की किताबें खरीद रहे हैं।

नहीं चेत रहे अधिकारी

हाल ही में कलेक्ट्रेट में हुई जनसुनवाई के दौरान मंहगी किताबों और यूनिफार्म की कई शिकायतें पहुंची थी। जिसके बाद जिले के शिक्षा अधिकारी अजय कटियार से इस मामले का संज्ञान लेते हुए टीम बनाकर जांच करवाने की बात कही थी। लेकिन अभी भी स्थिति यथावत ही है। लगता है कि अधिकारी जानबूझ कर चेत नहीं रहे हैं।

नियम रखे हैं ताक पर

नियम कहता है कि किसी भी अभिभावक को एक ही दुकान से पुस्तकें खरीदने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो इसकी शिकायत जिला शिक्षा अधिकारी को की जा सकती है। लेकिन स्कूलों ने सिर्फ खानापूर्ति के लिए दुकानों की सूची जारी की है लेकिन उनमें से सिर्फ एक या दो दुकानों पर ही पुस्तकें मिलेगी , शेष सिर्फ सही दुकान का पता बताते हैं।

किसके कितने दाम

कक्षा - सेट के दाम(रुपए में)

केजी - 3100 से 3800

एलकेजी - 3200 से 4200

कक्षा 1 - 4800 से 6200

कक्षा 2 - 5100 से 6300

कक्षा 3 - 5400 से 6900

कक्षा 4 - 5900 से 7400

कक्षा 6 से 9 - 5700 से 8900

(नोट: प्रत्येक स्कूल के सेट की कीमतों में फर्क है)

यहां इंदौर से सीखने की जरूरत

देखा जाता है कि निजी स्कूलों के संचालकों की अोर से छात्रों और पालकों को निर्धारित दुकानों से ही यूनिफार्म , जूते, टाई, किताबें-कापियां खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है। इस मामले में स्वजनों की शिकायतें भी आती रहती हैं। इसकी गंभीरता को समझते हुए इंदौर के जिला कलेक्टर इलैयाराजा टी ने हाल ही में एक आदेश जारी किया है। इसमें स्पष्ट किया है कि यदि छात्र या उसके स्वनजों को कोई स्कूल किसी दुकान से जरूरी सामग्री खरीदने के लिए दबाव बनाएंगो तो उसकी शिकायत दर्ज करवाई जाए और उन पर तत्काल कार्यवाही की जाएगी।

किताबें खरीदने में पसीने छूट जाते हैं

निजी कंपनी में काम करने वाले राघवेंद्र शर्मा बताते हैं कि उनका संयुक्त परिवार है और कमाने वाले वह अकेले । ऐसे में घर के तमाम खर्चों के साथ बच्चों को इतनी मंहगी शिक्षा दिलाने में पसीने छूट जाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि किसी की पुरानी पुस्तकों से पढ़ा लें , जब मन चाहे तब सिलेबस भी बदल दिया जाता है। कम से कम शिक्षा का तो व्यापारीकरण न करें।

सूची 10 की लेकिन एक-दो दुकान पर मिलती है किताबें

फाइनेंस कंपनी में काम करने वाले शुभम सिंह ने बताया कि उनका बेटा अभी तीसरी कक्षा में हैं । अभी से शिक्षा के नाम पर इतनी लूट खसोट मचाई जा रही है यह बेहद चिंता जनक है। तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे की किताबों का खर्चा ही 3400 रूपए चुकाया है। साधारण इंसान के लिए बच्चे को अच्छी शिक्षा दिला पाना बेहद मुश्किल हो गया है।

‘स्कूलों को उन किताबों का चयन करना होता है जाे आसानी से उपलब्ध हो जाए। इसके साथ ही सूची भी देनी होती है कि शहर की किन दुकानों पर उनके स्कूल की पुस्तक मिल रही हैं। लेकिन यदि किताबों के मामले में धांधली चल रही है तो इस पर कार्यवाही होगी। जल्द से जल्द सभी बीआरसी की टीम गठित कर के औचक निरीक्षण करवाया जाएगा।’

- दीपक कुमार पांडेय, संयुक्त संचालक , लोक शिक्षण संभाग ग्वालियर