वाशिंगटन । हमारे सौरमंडल में हर ग्रह में ऐसी खूबियां हैं जो किसी और ग्रह में नहीं हैं। हमारे सौरमंडल के बाहर किसी अन्य तारे का चक्कर लगाने वाले ग्रहों में भी बहुत ही अलग-अलग तरह के गुण होते हैं जो हमारे सौरमंडल के किसी ग्रह में देखने को नहीं मिलते हैं। इस तरह के ग्रहों के उत्पत्ति और विकास की जानकारी हासिल करना भी मुश्किल काम होता है। ऐसे ही एक तरह के ग्रह होते हैं जिन्हें खगोलविद “गर्म गुरु ग्रह” कहते हैं। 
नए अध्ययन शोधकर्ताओं ने उनकी उत्पत्ति संबंधी नई जानकारी हासिल की है।चाहे हमारा सूर्य हो या फिर कोई दूसरा तारा, किसी भी ग्रह के दो प्रमुख गुण होते हैं जिनके आधार पर उनका वर्गीकरण होता है वह है उनका आकार और उनकी अपने तारे की कक्षा। इस आधार पर ही बाह्यग्रहों का भी कई बार वर्गीकरण हो जाता है जिसमें सबसे ज्यादा नाम सुपर अर्थ और गर्म गुरु ग्रह के ही आते हैं। इस वर्गीकरण का आधार पृथ्वी और गुरु ग्रह से मिलते जुलते गुणों के कारण हुआ है। 
गर्म गुरु ग्रह आकार में तो हमारे सौरमंडल के गुरु ग्रह से थोड़े बड़े होते हैं। लेकिन इनकी अपने तारे से दूरी हमारी पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी से काफी कम होती है यानि ये अपने तारे का काफी करीब से चक्कर लगाते है। इस वजह से  इनका तापमान हजारों डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है जिसके कारण इनका नाम गर्म गुरु ग्रह पड़ा है। नए अध्ययन में खगोलविदों ने बाह्यग्रहों की सापेक्ष उम्र का निर्धारण करने का नया तरीका खोज निकाला है और यह सिद्ध किया है कि इस तरह के ग्रहों का निर्माण बहुत से तरीकों से  हो सकता है।1995 में पहले गर्म गुरु की खोज के बाद से ही खगोलविद यह जानना का प्रयास कर रहे हैं कि आखिर इस तरह के गर्म बाह्यग्रह बनते कैसे हैं और ये अपने चरम कक्षा में कैसे पहुंच जाते हैं या कायम रह पाते हैं।जान हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के खगोलविदों ने अरबों तारों का अवलोकन करने वाले, यूरोपीय स्पेस एजेंसी ईसा के गाइया अंतरिक्ष यान से नए मापन के  जरिए गर्म गुरु ग्रहों की सापेक्ष उम्र निकालने की विधि पता लगाई है।
 अभी तक इस तरह के ग्रहों की निर्माण की व्याख्या नहीं हो सकी थी इसलिए वैज्ञानिकों ने इन गर्म गुरुओं के निर्माण पर कई तरह के विचार प्रस्तुत किए थे। शुरू में वैज्ञानिकों ने प्रस्ताव दिया कि गर्म गुरु  भी गुरु ग्रहों की तरह अपने तारे से बहुत दूर बने होंगे और फिर वे अपने तारे की गैस और धूल की चक्रिका से अंतरक्रिया करते हुए अपनी नई स्थिति की ओर विस्थापित हो जाते होंगे। इस अलावा ऐसा भी हो सकता है कि वे अपने तारे से बहुत दूरी पर ही बने होंगे, लेकिन चक्रिका के खत्म होने के बाद ही, हाई एक्सेंट्रिसिटि माइग्रेशन प्रक्रिया के जरिए अपने तारे के नजदीक आ गए होंगे।यह सवाल पिछले 25 सालों से खगोलविदों को परेशान कर रहा है। जहां कुछ गर्म गुरु ग्रह की कक्षा अपने तारे के घूर्णन से अच्छे से संरेख है, जैसा कि हमारे सौरमंडल में देखने को मिलता है, वहीं अन्य का मामला गड़बड़ है। शोधकर्ताओं का कहना है कि संरेख तंत्र बनने की प्रक्रिया तेज होती है जबकि विकृत संरेख तंत्र लंबे समय में बनते हैं। 
अध्ययन के नतीजे सुझाते हैं कि कम भार के तारों वाले कुछ तंत्रों  ज्वारीय अंतरक्रिया के जरिए ग्रह फिर संरेख हो जाते हैं। धरती पर स्थित टेलीस्कोप भी वैज्ञानिकों की बाह्यग्रहों के  बारे में सीखने में मदद कर रहे हैं।वैज्ञानिक यह भी सिद्ध नहीं सके थे कि अलग अलग तरह की कक्षा अलग निर्माण प्रक्रिया का नतीजा थीं या नहीं। ऐसे में उम्र का अंदाजा लगाना एक मुश्किल काम ही रहा। गाइया के आंकड़ों का उपयोग कर शोधकर्ताओं ने तारों की गति में बदलाव का पता लगाया और सिद्ध किया कि तारों की अलग अलग गति के कारण ऐसे ग्रहों का निर्माण अलग अलग तरह से होता है।